अक्सर तुम्हारी आदत है, अपनी बात बोलते हो और बस,सामनेवाली की बात सुनने की फुर्सत ही नहीं तुम्हे! आज भी ऐसा ही हुआ….मैं पीछे वाली बालकनी में खड़ी समंदर की लहरों को देख रही थी ..के अचानक ही आशा ने आ के कहा, “मेमसाहिब, साहिब का फ़ोन आया है, जल्दी आइये, वो बहोत गुस्से में हैं!” मैं दौड़ती हुई फ़ोन के पास पहुची, और जैसे ही रिसीवर को कान से लगाया, तुम मुझपर बरस पड़े, “कहाँ रहती हो? क्या करती रहती हो के एक बात तुमतक पहुचाने के लिए भी मुझे एक घंटे इंतज़ार करना पड़ता है!, तुम्हारी तरह ख़ाली नहीं बैठा रहता मैं, हजारों काम होते हैं मेरे पास………अब कुछ बोलोगी भी????" मैं कुछ बोलूं उससे पहले ही तुम बोल पड़ते हो … “ मैं आज घर नहीं आऊंगा, मीटिंग है ऑफिस में और फिर यहीं से एयर पोर्ट निकल जाऊंगा! तुम संभाल लेना!” और फ़ोन रख देते हो! मैं कुछ कहती नहीं…भारी क़दमों से वापस बालकनी में आ जाती हूँ और समंदर की लहरों को देखने लगती हूँ! लहरें मुझे माज़ी में ले जा रही हैं...और मैं भी खुद को रोक नहीं पाती, एक ही मोहल्ले में रहते थे हम, दिन रात का आना जाना था, एक बार जब मैं तुम्हारे घर आई और कहा “चाचा ऋषि कहाँ है? वो दिख नहीं रहा और तुमने पीछे से आ के मेरी चोटी खींचते हुए मुझसे कहा मैं यहाँ हूँ धन्नो, और इतना कहकर तुम भागे और मैं गुस्से से तुम्हारे पीछे दौड़ी ….चाची रसोईघर में थी और चाचा को देखते हुए बोली दोनों "बड़े हो गए पर इनका बचपना नहीं गया…देखिये ना अब भी उसी तरह लड़ते रहते हैं!!" और चाचा कहते…"बड़े हुए ही कहाँ हैं!
तुम्हारा पीछा करते करते मैं छत पर आ गयी थी और तुम वहीँ चारपाई पर लेटे मेरा इंतज़ार कर रहे थे! तुमने कहा “तुझे कितनी बार कहा है अपने होने वाले पति का नाम नहीं लेते" मैंने तुम्हे छेड़ते हुए कहा “पति और तू ??, मैं तो शादी करुँगी किसी राजकुमार से, जो मेरे लिए ढेर सारी रेशमी साड़ियाँ लाएगा और जो रोज़ अपनी सफ़ेद मर्सिडीज़ में मुझे घुमाने ले के जाएगा" ये सुन तुम्हारे चेहरे का रंग उड़ गया, और तुमने कहा... मैं तुझे किसी और के साथ नहीं देख सकता चाँद.....मैं ये सब लूँगा तेरे लिए ………पर तू मुझे छोड़ेगी तो नहीं ना! तुम्हारी ये आवाज़, ऐसा लगा मानो सारी दुनियाँ का प्यार इसमें भरा हो! जितनी सच्ची आवाज़ उतनी सच्ची तुम्हारी आँखें….तुम्हारे सांवले चेहरे पे ये बड़ी बड़ी आँखें…और मेरा बस इतना कहना ही के “मैं तुम्हारे बिना रह सकती हूँ क्या! तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती और तुम मेरी चोटी पकड़कर मुझे अपनी बाँहों में ले लेते! मैं थोड़ा घबड़ा जाती, और जैसे ही जाने के लिए मेरे कदम आगे की ओर बढ़ते …तुम दोबारा मुझसे पूछते….”यदि मैं तुझे वो सब नहीं दे पाया तो क्या तू मुझे छोड़ देगी?” मैं तुम्हारी ओर पलटती और देखती..तुम कहते …ऐसे सवालिया नज़र से क्यूँ देख रही है? हाँ मैं जनता हूँ तू मेरा हर हाल में साथ देगी! तेरे लिए मुझसे ज्यादा कुछ भी मायने नहीं रखता …तो ये भी सुन ले इस ऋषि के लिए भी इस चाँद के आगे दुनिया नहीं है!!
उस दिन जब सब शाम को सब साथ बैठे बातें कर रहे थे …और तुम एकटक मुझे देख रहे थे …दीदी ने कहा हम अन्ताक्षरी खेलेंगे …पहला अक्षर “म” है इससे गाओ ऋषि और उनके इतना कहते ही तुमने गाना शुरू कर दिया “मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊं कैसे, लुट गए होश तो फिर होश में आऊं कैसे” गाना सुनते ही …दीदी और सब हंस पड़े और माँ ने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा और मैंने नज़र झुका ली…माँ ने अचानक ही कहा “मुझे लगता है चांदनी की शादी करवा देनी चाहिए ” ये सुनते ही तुम घबरा गए ……….और मेरी माँ की ओर देखा ….. माँ ने कहा “तू क्यूँ घबरा रहा है …शादी तेरे साथ ही करवाउंगी ” माँ का इतना कहना था के मैंने शर्माते हुए कहा मैं सब के लिए चाय ले के आती हूँ….तुम भी मेरे पीछे आ गए …और मुझसे कहा ….”अब भी मेरा नाम लेगी??” मेरे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था …ठीक एक महीने बाद की शादी की तारीख निकली….हमदोनों कितने खुश थे…ऐसा लगता था जैसे सालों जिस रास्ते पे चलती रही आज उसकी मंजिल मिल गयी
आज शादी की तीसरी सालगिरह है तुम्हारे पास अब वक़्त नहीं होता हमेशा कामो में उलझे रहते हो …मैं अकेली घर में अपने माज़ी के ख्यालों में डूबी रहती हूँ ……..आज भी कुछ ऐसा ही था फिरभी उम्मीद थी तुम्हरे आने की, लेकिन इस फ़ोन के बाद वो उम्मीद भी जाती रही……. मैं आवाज़ लगाती हूँ …. ”आशा घर की सफ़ाई ठीक से कर दो …वास में नए फूल लगा दो …सफ़ेद गुलाब लगाना!” सफ़ेद गुलाब लाये थे तुम पहली सालगिरह पर ….और कहा था मेरा प्रोमोतिओं हो गया है…अब सिल्क की सदियाँ भी होंगी और गाडी भी ..उस दिन पहली बार मैंने महसूस किया के मेरी वो मजाक में कही बातें तुमने अपने दिल पे ले ली थी!!
तुम्हारा साथ माँगा था खुदा से मैंने फुर्सत में ….
मिला जब साथ फिर भी इतना फासला क्यूँ है!