मन जैसे खोखला सा हो चला था,
दर्द हर पल दिल में उमरता, फिर बुझ जाता,
आँखें सूनी, कुछ ऐसी जैसे सूखा कुआं हो कोई,
सांस जो जाती थी, सो लौटकर आती न थी,
दिल की धडकनें न बढ़ती थी, न घटती ही थी,
अन्दर ही अन्दर जैसे पत्थर सी हो गई थी मैं,
अजब थी तन्हाई, जो न जाती थी, न थमती ही थी,
सच.....अजब थी तन्हाई!
और…. तुम आ गए,
तुम्हारा आना बस पल भर का,
कर गया मुझको जिंदा,
भर गया मुझमें सांसें….
देखो आज मैं पूरी हो गयी.