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Showing posts from 2018

आज फ़िर तन्हाई

न डोली , न शेहनाई , न तारों की बारात , हम चल पड़े थे यूँही , बस थामें तुम्हारा हाथ , तुम्हारी खामोश आँखों में जाने क्या क्या पढ़ा हमने , कुछ अनसुने अल्फ़ाज़ , कुछ इश्क - ओ-मुहब्बत की बात , या नज़रें झूठ कहती थी , या तुमने सच छुपाया था , किस तरह बेहिसाब मुझपर इलज़ाम लगाया था , आँखों की खुमारी , दिल का नशा जाता रहा , तुमने कुछ तरह से तोड़ा मुझे , टुकड़े टुकड़े में मेरा इश्क सर झुकाए रोता रहा , ख़ाब तो ख़ाब थे , हकीक़त कुछ और ही थी , न तुम थे , न कोई आहट , न परछाई ही थी , आज फ़िर दूर तलक , मेरे सिर्फ़ तन्हाई ही थी , .....निरुपमा 19.7.18 मेरी कविता मेरी ही आवाज़ में... https://www.youtube.com/watch?v=objXnQOKYUE&feature=youtu.be

चंद बातें : बेफिज़ूल की

एक छोटे से पल को पकड़कर चली आई थी मैं , वो पल , जो हमारे बीच गुज़रे लम्हों का यादगार था , वो पल , जो तुमसे जुड़े अनगिनत ख़ाबों का असफ़ार   था , वो पल के जिसमें मैं और तुम थे , हमारा एक संसार था , तुमसे दूर रहूँ! कब ख़ुद पर मुझको इख्तियार था , तुम्हारी आँखों की रौशनी , मेरी ज़ुल्फ़ों का तलबगार था , जहां तसल्लियों के दिन थे , ख़ुशनुमा सी रातें थी , दोनों बस साथ थे , यूँही बेवजह की बातें थी , उन्ही को ढूंढती फिरती हैं आज भी मेरी दो आँखें , काश हो जाए फिर बेवजह , बेफिज़ूल की चंद बातें ........निरुपमा 7.7.18

बाकी बस मलाल है

छोटे से लम्हे में , पिरो लाये थे तेरे इश्क को , फ़िर बहोत देर तलक , उन्हें याद हम करते रहे , जिन लम्हों में खुद को हम वार आये थे तुमपर , तुम उन्ही लम्हों को खुद से दूर दूर करते रहे , एक अजब सी धुन थी , जो सीने में बजती रही , एक अजब नशे में , दिन रात हम खोये रहे , हम दोनों कल साथ थे , और साथ होंगे अब के बाद , बस यही ख्याल , दिन रात हम बुनते रहे , अब आया है होश तो न तुम हो , न वो ख्याल है , कोई दिल में धुन नहीं , बाकी बस मलाल है , दो घडी की ज़िन्दगी में साथ क्यूँ मुमकिन नहीं ? उस ख़ुदा के पास क्या मेरे वास्ते कुछ भी नहीं ??

हैराँ

मैं खुद ही हैराँ हूँ अपने बदले हुए अंदाज़ से, मैं खुद ही परेशाँ हूँ अपने हर एक अंजाम से, जाने कैसे बदल गई ये शक्सियत मेरी, कोई मुझसे क्या कहे "आप तो ऐसे न थे" "प्यार इश्क मोहब्बत, हालत की पैदाइश है और हालात के आगे ही दम तोड़ देते हैं...." ......निरुपमा